हरिद्वार : गोवर्धन पूजा भारतीय संस्कृति में प्रकृति, पशु और मानव के बीच के गहरे संबंध को दर्शाती है। इस पर्व का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व तो है ही, साथ ही इसका आयुर्वेदिक एवं चिकित्सीय दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है। डॉ. अवनीश उपाध्याय, वरिष्ठ परामर्श चिकित्सक, ऋषिकुल कैंपस, उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, हरिद्वार, के अनुसार गोवर्धन पूजा के दौरान गायों की पूजा, अन्नकूट प्रसाद और मिट्टी के दीयों का उपयोग न केवल पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में सहायक है, बल्कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। आयुर्वेद के अनुसार गाय के दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर का उपयोग विभिन्न रोगों में औषधि के रूप में किया जाता है, जो गोवर्धन पूजा के माध्यम से लोकजीवन में समाहित है। साथ ही, अन्नकूट में विविध प्रकार की सब्जियों और अनाज का सेवन ताजगी और पोषण प्रदान करता है, जो सर्दियों के मौसम में स्वास्थ्य रक्षा हेतु आवश्यक है। इस प्रकार गोवर्धन पूजा हमारी परंपरा के साथ-साथ प्रकृति और स्वास्थ्य की रक्षा हेतु वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
आयुर्वेद में गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा का आधार गो-विज्ञान पर है। आयुर्वेद में गाय का विशेष स्थान है और इसे संजीवनी कहा गया है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता तथा विभिन्न आयुर्वेदिक ग्रंथों में गाय के पंचगव्य – गोदुग्ध, गोमूत्र, गोमय, गोघृत और गोदधि को अमृततुल्य बताया गया है। ये पंचगव्य न केवल औषधीय गुणों से भरपूर हैं बल्कि इनमें संपूर्ण शरीर का संतुलन बनाए रखने की क्षमता भी है। चरक संहिता के अनुसार गोदुग्ध पाचन को सुधारता है, गोमूत्र शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में सहायक है, और गोमय का संपर्क त्वचा की समस्याओं को दूर करता है।
आयुर्वेद के अनुसार पंचगव्य की औषधीय उपयोगिता
गोवर्धन पूजा में पंचगव्य का उपयोग होता है, जिसमें औषधीय और आध्यात्मिक महत्व है :-
- गोदुग्ध (गाय का दूध) : आयुर्वेद में गोदुग्ध को सत्त्विक, पित्त को शांत करने वाला, ओज को बढ़ाने वाला बताया गया है। इसके सेवन से शरीर में ताकत और मानसिक शांति आती है।
- गोघृत (गाय का घी) : यह त्रिदोष शामक है और आयुर्वेद में इसे स्मरण शक्ति को बढ़ाने और मन की शांति देने में उपयोगी बताया गया है। गोवर्धन पूजा में गाय का घी विशेष रूप से दीप जलाने में उपयोग होता है, जो पर्यावरण को शुद्ध करने के साथ ही मानसिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है।
- गोमूत्र (गाय का मूत्र) : आयुर्वेद के अनुसार गोमूत्र शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। पंचगव्य का एक महत्वपूर्ण तत्व होने के नाते इसका उपयोग गोवर्धन पूजा में किया जाता है, जिससे आंतरिक शुद्धि और रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा मिलता है।
- गोमय (गाय का गोबर) : गोबर में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो हवा में मौजूद हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। गोवर्धन पूजा में गोबर का उपयोग घरों में किया जाता है, जिससे वातावरण शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- गोदधि (गाय का दही) : दही को पाचन सुधारक और शरीर में शीतलता लाने वाला माना गया है। यह भी पंचगव्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है और गोवर्धन पूजा के दौरान इसका उपयोग शरीर की तासीर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वेदों एवं पुराणों में गोवर्धन पूजा के पीछे की कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि पर्यावरण, जल, जंगल और जीवों का संरक्षण कितना आवश्यक है। श्रीमद्भागवत के अनुसार, श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर लोगों को अतिवृष्टि से बचाया था, जो इस पर्वत और पर्यावरण की सुरक्षा का प्रतीक है। आज के संदर्भ में देखें तो यह संदेश पर्यावरण संरक्षण की ओर प्रेरित करता है, जिससे प्रकृति में संतुलन बना रहता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी, पर्यावरण के अनुकूल क्रियाएँ जैसे गोबर का प्रयोग, पंचगव्य का सेवन, और प्राकृतिक रूप से बनी वस्तुओं का उपयोग, हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाते हैं।
गोवर्धन पूजा के दौरान विशेष चिकित्सीय लाभ
गोवर्धन पूजा में गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक निर्माण किया जाता है। यह न केवल धार्मिक आस्था है बल्कि गोबर में रोगाणुनाशक गुण होते हैं। विभिन्न शोधों के अनुसार, गोबर में लैक्टोबेसिलस नामक जीवाणु होते हैं जो पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। आयुर्वेद में भी गोबर को त्वचा रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया गया है। इसके नियमित संपर्क से त्वचा की रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। गोवर्धन पूजा में गोबर के उपयोग से रोगनिरोधक प्रभाव: गोवर्धन पर्वत का प्रतीक गोबर से बनाने के दौरान गोबर में मौजूद जीवाणुओं से वातावरण में मौजूद हानिकारक तत्व नष्ट होते हैं। त्वचा पर इसका संपर्क करने से त्वचा रोगों में लाभ होता है, और आसपास का वातावरण शुद्ध होता है।
पंचगव्य और मन-शरीर की शुद्धि
पंचगव्य का आयुर्वेद में बहुत महत्व है और इसे शरीर एवं मन की शुद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार पंचगव्य का नियमित सेवन शरीर में संतुलन बनाए रखता है। इसका विशेष लाभ मन की शुद्धि, ओज की वृद्धि और त्रिदोष संतुलन में देखा गया है। इस प्रकार पंचगव्य का सेवन मानसिक और शारीरिक स्तर पर शांति, स्थिरता और प्रसन्नता का संचार करता है।
कृषि एवं पर्यावरण पर प्रभाव
गोवर्धन पूजा का एक अन्य पक्ष कृषि एवं पर्यावरण संरक्षण है। गोबर का उपयोग जैविक खेती में खाद के रूप में किया जाता है, जो मृदा को उपजाऊ बनाने में सहायक है। जैविक खाद का उपयोग मृदा में नाइट्रोजन और अन्य तत्वों का संतुलन बनाए रखता है, जो कि हमारी फसलों को प्राकृतिक पोषक तत्व प्रदान करता है। इस प्रकार गोवर्धन पूजा हमारे जीवन, स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति हमारा ध्यान केंद्रित करती है।
वैज्ञानिक अध्ययन एवं आधुनिक चिकित्सा में योगदान
आधुनिक चिकित्सा पद्धति ने भी गाय के दूध, गोबर और गोमूत्र के लाभों को प्रमाणित किया है। शोध में पाया गया है कि गाय के दूध में ए2 प्रोटीन होता है जो शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक है और कैंसर जैसी बीमारियों में सहायक होता है। गोमूत्र में 20 से अधिक ऐसे तत्व पाए गए हैं जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। इसके अलावा, गोबर में रेडिएशन से बचाव की क्षमता पाई गई है। अमेरिका एवं यूरोप में गोमूत्र एवं गोबर पर कई अनुसंधान हो चुके हैं, जो इसके औषधीय महत्व को प्रमाणित करते हैं।
गोवर्धन पूजा का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह हमारे जीवन, स्वास्थ्य और पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने का प्रतीक भी है। आयुर्वेद के अनुसार पंचगव्य का सेवन और गोमय का उपयोग हमारे शरीर एवं मन को स्वस्थ और सशक्त बनाता है। पर्यावरण, जैविक खेती, रोग प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने की दृष्टि से गोवर्धन पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है।