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प्रधानमंत्री मोदी ने जनजातीय विरासत को वैश्विक स्तर पर दिलाया सम्मान          

by badhtabharat

नई दिल्ली : भारत 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाएगा, यह दिन भगवान बिरसा मुंडा की विरासत को समर्पित है, जो एक सम्मानित जनजातीय नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। यह दिन न केवल भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन का सम्मान करता है, बल्कि भारत भर के जनजातीय समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और योगदान को भी रेखांकित करता है, जिसे अतीत में अक्सर अनदेखा किया जाता रहा है।   

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भारत के जनजातीय समुदायों के साथ रिश्ता नीतियों से आगे जाता है – यह व्यक्तिगत है। यह संबंध उनके कार्यों से स्पष्ट होता है, चाहे वह किसी जनजातीय के घर में चाय पी रहे हों, उनके त्योहार मना रहे हों, या उनके पारंपरिक परिधानों को गर्व के साथ पहन रहे हों। पिछले तौर-तरीकों के विपरीत, प्रधानमंत्री मोदी का जनजातीय समुदायों के साथ जुड़ाव अत्यंत वास्तविक है। वे उनकी कहानियों, कलाओं और नायकों को लोगों के सामने लाते हैं तथा उनके योगदान को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रमुखता देते हैं। कई मायनों में, वे भारत के जनजातीय समुदायों के साथ इतने करीबी, सम्मानजनक संबंध को बढ़ावा देने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं।  पिछले दशक में, जनजातीय संस्कृति की पहचान में और उत्सव मनाने में उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया है। यहां वे अवसर बताए गए हैं, जिनके जरिये प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय और वैश्विक मंचों पर जनजातीय समुदायों की आवाज को बुलंद किया है।

विश्व के राजनेताओं को जनजातीय विरासत से जुड़े उपहार

विश्व के राजनेताओं को जनजातीय कलाकृतियाँ भेंट करके, प्रधानमंत्री मोदी भारत की आदिवासी संस्कृति के प्रति वैश्विक सराहना को बढ़ावा देते हैं तथा संवाद और पहचान को प्रोत्साहित करते हैं। डोकरा कला से जुड़े उत्पाद धातु की जटिल कारीगरी और गहरी ऐतिहासिक जड़ों के लिए जानी जाती हैं। ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कुक आइलैंड्स और टोंगा के नेताओं को डोकरा कलाकृतियाँ उपहारस्वरूप दी गई हैं। झारखंड की सोहराई पेंटिंग रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को और मध्य प्रदेश की गोंड पेंटिंग ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा को उपहार में दी गई, जो अपने जीवंत रंगों और जटिल पैटर्न के लिए प्रसिद्ध है। उज्बेकिस्तान और कोमोरोस के नेताओं को महाराष्ट्र की वारली पेंटिंग से सम्मानित किया गया।  

जीआई टैग के साथ जनजातीय विरासत को बढ़ावा देना 

भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग के माध्यम से जनजातीय उत्पादों की मान्यता को गति मिली है, अब 75 से अधिक आदिवासी उत्पादों को आधिकारिक रूप से टैग किया गया है।  जनजातीय कारीगरों को सशक्त बनाने का यह प्रयास सरकार की “वोकल फॉर लोकल” पहल के अनुरूप है, जो पारंपरिक शिल्प को मान्यता प्राप्त ब्रांडों में बदल रहा है। वर्ष 2024 में कई वस्तुओं को जीआई टैग प्राप्त हुआ, जिसमें असम की बांस की टोपी, जापी; ओडिशा की डोंगरिया कोंध शॉल; अरुणाचली याक के दूध से बना किण्वित उत्पाद, याक चुरपी; ओडिशा में लाल बुनकर चींटियों से बनी सिमिलिपाल काई चटनी और बोडो समुदाय का पारंपरिक बुना हुआ कपड़ा, बोडो अरोनई शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, जनजातीय समुदायों की विविध भाषाओं, परंपराओं और सांस्कृतिक प्रथाओं का दस्तावेज तैयार करने, इन्हें संग्रहित करने और इनको बढ़ावा देने के लिए 300 से अधिक जनजातीय विरासत संरक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं। 

भगवान बिरसा मुंडा की विरासत का सम्मान

पीएम मोदी ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस घोषित करके भगवान बिरसा मुंडा को सम्मानित किया है। वे झारखंड के उलिहातु में बिरसा मुंडा के जन्मस्थान का दौरा करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। रांची में भगवान बिरसा मुंडा मेमोरियल पार्क और स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, जिसमें बिरसा मुंडा की 25 फुट ऊंची प्रतिमा है तथा अन्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान, इस मान्यता को रेखांकित करता है। बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में, श्री विजयपुरम स्थित वनवासी कल्याण आश्रम में उनकी एक भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी तथा स्थापना से पहले प्रतिमा को विभिन्न स्थानों पर ले जाने के लिए एक “गौरव यात्रा” भी निकाली जाएगी।  

जनजातीय विरासत के लिए एक बड़ा मंच – आदि महोत्सव 

वर्ष 2017 में अपनी शुरुआत के बाद से, आदि महोत्सव ने भारत भर में विभिन्न स्थानों पर आदिवासी उद्यमिता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया है, जिसके अब तक 37 कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं। जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (ट्राइफेड) द्वारा आयोजित इस महोत्सव में 1,000 से अधिक जनजातीय कारीगरों ने भाग लिया है और 300 से अधिक स्टॉल पर जनजातीय कला, कलाकृतियों, हस्तशिल्प और व्यंजनों की समृद्ध विविधता का प्रदर्शन किया गया है। जी20 शिखर सम्मेलन में, जनजातीय कारीगरों को अपने काम के लिए और भी अधिक अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली। 

जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान   

मोदी सरकार ने बिरसा मुंडा, रानी कमलापति और गोंड महारानी वीर दुर्गावती जैसे जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया है। खासी-गारो, मिजो और कोल विद्रोह जैसे आंदोलनों, जिन्होंने भारत के इतिहास को स्वरुप प्रदान किया है, को भी मान्यता दी गई है। भोपाल में हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन और मणिपुर स्थित कैमाई रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी गाइदिन्ल्यू स्टेशन कर दिया गया है। इसके अलावा, पूरे भारत में स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय विकसित किए जा रहे हैं, जिनमें से तीन पहले ही बनकर तैयार हो चुके हैं: रांची में भगवान बिरसा मुंडा जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, जबलपुर में राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह संग्रहालय और छिंदवाड़ा में बादल भोई जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय।    

जनजातीय उत्पादों के निर्यात का विस्तार

भारत के जनजातीय उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो रहे हैं। अराकू कॉफी ने 2017 में पेरिस में अपनी पहली ऑर्गेनिक कॉफी शॉप खोली, जिससे वैश्विक बाजारों में इसका प्रवेश सुनिश्चित हुआ। इसी तरह, निर्जलीकरण प्रक्रिया से तैयार छत्तीसगढ़ के महुआ फूलों ने फ्रांस सहित अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी जगह बना ली है। खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका में, शॉल, पेंटिंग, लकड़ी के सामान, आभूषण और टोकरियाँ जैसे जनजातीय उत्पाद तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। सरकार ट्राइफेड आउटलेट और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ साझेदारी के माध्यम से इन प्रयासों का समर्थन कर रही है।  

 ट्राइफेड के माध्यम से जनजातीय आजीविका को सशक्त बनाना

नवंबर 2024 तक, ट्राइफेड ने 218,500 से अधिक कारीगर परिवारों का सशक्तिकरण किया है और अपने खुदरा नेटवर्क, ट्राइब्स इंडिया के माध्यम से 1,00,000 से अधिक आदिवासी उत्पादों की बिक्री की सुविधा प्रदान की है। यह पहल कारीगरों को व्यापक बाजारों से जोड़कर, उनके अनूठे शिल्प को बढ़ावा देकर और स्थायी आय स्रोत सुनिश्चित करके आजीविका में वृद्धि करती है।

भारत के जनजातीय समुदायों के प्रति पीएम मोदी की प्रतिबद्धता उनकी विरासत को बढ़ाने, उनकी विरासत को संरक्षित करने और उनके योगदान को राष्ट्रीय आख्यान से एकीकृत करने के उनके प्रयासों में परिलक्षित होती है। ये पहलें जनजातीय समुदायों की गहरी सांस्कृतिक जड़ों का सम्मान करती हैं, उन्हें सशक्त बनाती हैं तथा उनकी बातों और कहानियों को दुनिया के सामने लाती हैं।