उत्तरकाशी (कीर्ति निधि सजवाण): खड़ी चढ़ाई, ऊपर आसमान से गुनगुनी धूप के साथ बरसते बादल के बावजूद भी श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ। यह दृश्य देखने को मिलने को मिला उत्तरकाशी जनपद की सबसे पौराणिक यात्रा पंचकोसी(वारुणी) यात्रा में, जहाँ पर यात्री जैसे ही यात्रा के मुख्य पड़ाव वरुणावत शिखर के टॉप पर स्तिथ ज्ञानजा गांव के ज्ञानेश्वर महादेव और ज्वाला माता के मंदिर में पहुंचे तो वहां पर श्रद्धालु गढ़वाली भजनों पर जमकर झूमे। तो यात्रा के दौरान ब्लॉक प्रमुख विनीता रावत और भाजपा नेता जगमोहन रावत ने भी श्रधालुओं और ग्रामीणों के साथ रासो तांदी पर जमकर झूमे।
कालांतर से चैत्र माह की त्रयोदशी को पंचकोसी(वारुणी) यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष भी रविवार को पंचकोसी(वारुणी) यात्रा का आयोजन भव्य रूप से की गई। जनपद और आसपास के इलाकों से पहुंचे श्रद्धालुओं ने चुंगी बड़ेथी में गंगा और वरुणा नदी के संगम से जलभकर बसूँगा गांव में रेणुका माता, कण्डार देवता, साल्ड में भगवान जगगन्नाथ सहित मां अस्टभुजा माता सहित ज्ञानजा गांव में ज्ञानेश्ववर महादेव, ज्वाला मां और वरुणावत पर्वत पर शिखलेश्वर महादेव सहित संग्राली-पाटा-बग्याल गांव में विमलेश्वर महादेव सहित कण्डार देवता और उसके बाद गंगोरी में अस्सीगंगा और गंगा के संगम के बाद बाबा काशी विश्वनाथ में जलाभिषेक के साथ समाप्त होती है। इस यात्रा में वर्षों से चली आ रही अनूठी अतिथि देवो भव की परम्परा देखने को मिलती है, यात्रा पड़ाव के सभी गांव के ग्रामीण निस्वार्थ भाव से यात्रियों के जलपान सहित सेवा करते हैं।
स्थानीय निवासी विपिन नेगी बताते हैं की पंचकोसी(वारुणी) यात्रा का उल्लेख स्कन्द पुराण के केदारखण्ड में है। कहा जाता है की अस्सी-वरुणा नदी के बीच में स्तिथ वरुणावत पर्वत पर शिव का निवास है इसकी तलहटी में जहाँ महाकाल बाबा काशी विश्वनाथ विराजमान है तो वरुणावत पर्वत के शिखलेश्वर महादेव पर्वत पर भगवान शिव की सभा आयोजित होती थी, जहाँ 33 कोटि देवता यहां पर एकत्रित होते थे और जो भी श्रद्धालु इस यात्रा को करता है उसे भगवान शिव के साथ 33 करोड़ देवी देवताओं के आशीर्वाद के साथ हर मनोकामना पूर्ण होती है।