कोटद्वार (गौरव गोदियाल) । उत्तराखंड में पहले अनाज तोलने के लिये तराजू नहीं हुआ करते थे और इसलिए ग्राम या किलो जैसे माप लोग नहीं जानते थे। अनाज, तेल, घी, दूध आदि तोलने के लिये अलग से पैमाने होते हैं। ऐसा नहीं है कि यह चलन अब खत्म हो गया है। अब भी माणा, पाथा, नाली, सेर, दूण आदि चलता है हालांकि इनको अब किलो में तोला जा रहा है। पहले तोल के लिये खास तरह के बर्तन बने होते थे। इनमें जितना अन्न, तेल आदि समा जाए उसी तौल के अनुसार इनके नाम भी पड़ गये। माणा या माणू, पाथा या पाथू आदि। ये तांबा, लोहे, पीतल, लकड़ी और बांस या रिंगाल के बनाये जाते थे। उत्तराखंड में कई घरों में अब भी तौल के ये बर्तन मिल जाएंगे। लोहे या पीतल के बने पाथे बेलनाकार होते हैं। पाथे का निर्माण वही कारीगर करता था जिसका उसे पूरा ज्ञान हो।
गांवों में मांगलिक अवसरों या श्राद्ध आदि के समय दावत के लिए दी जाने वाली भोज्य सामग्री-दालें चावल या आटा इसी पाथे से माप कर देते हैं । विवाह आदि अवसरों पर मायके आई हुई दिशा-ध्याणी (फूफू, दीदी-भूलि, बेटी) को विदाई के समय दूण पाथ से माप कर दिया जाता है । पाथे का उपयोग केवल राशन मापने के लिए ही नहीं करते हैं बल्कि देव-पूजन में जलने वाले अखंड दीपक के लिए भी करते हैं, इसमें पाथे को झंगोरे से भर कर जलता हुआ दीपक रखा जाता है, जिसे साक्षात भैरवनाथ का प्रतिरूप माना जाता है । जागर गाने-बजाने वाला जागरी अपनी कांसे की थाली पाथे पर रख कर बजाता है ।